आज़ यहां पर आप नमाज़ मुकम्मल करने से ताल्लुक एक ज़रूरी इल्म यानी कि Sajda E Sahw Ka Tarika जानेंगे जो बहुत ही जरूरी है।
अगर हमसे नमाज़ अदा करते वक्त कोई वाजिब भूल से छूट जाती है तो उसे मुकम्मल करने के लिए हम सजदा ए सहव करते हैं।
इसकी इजाजत हमारी शरीयत ने दी है इसीलिए आप यहां पर ध्यान से पढ़ें और समझें जिसे फिर सजदा ए सहव करने में दिक्कत ना आए।
Sajda E Sahw Ka Tarika
- आपको मालूम हो कि हमसे इस नमाज़ की कुछ वाजिब चीजें छूट गई है।
- तो नमाज़ की आखिर के रकात मुकम्मल करने के बाद और सलाम से पहले।
- अत्तहियात पढ़े और हर नमाज़ की जैसे यहां भी शहादत उंगली खड़ी करनी है।
- अत्तहियात पढ़ने के बाद तुरंत सिर्फ दाहिनी तरफ एक सलाम फेरे।
- फिर दो सजदा करें इसके बाद तशह्हुद, दुरूदे इब्राहिम और दुआ ए मसूरा पढ़ कर सलाम फेर लें।
सजदा ए सहव से पहले इन बातों का ख्याल रखें
- सजदा ए सहव से सिर्फ नमाज़ की छूटी हुई वाजिबात ही पूरी की जा सकती है फर्ज नहीं।
- फर्ज छूट जानें से नमाज़ जाती रहती है सजदा ए सहव से भी उसे पूरा नहीं किया जा सकता।
- लेकिन अगर जान बूझ कर वाजिब छोड़ी हो तो सजदा ए सहव से भी पूरा नहीं किया जा सकता।
- एक मसला: अगर बगैर सलाम एक तरफ़ फेरे भी दो सजदे कर लेते हैं तो काफी है लेकीन।
- मगर ऐसा कसदन यानी जान बूझकर करना एक तरह से मकरूहे तनजीही होता है।
सजदा ए सहव का बयान
एक हदीस में है कि एक बार हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम 2 रकात पढ़ कर खड़े हो गए बैठे नहीं फिर सलाम के बाद सजदा ए सहव किया।
उस हदीस का तिर्मिजी ने मुगिरह इब्ने शोअबा रदियल्लाहु तआला अन्हुं से रिवायत किया और फरमाया कि यह हदीस हसन सही है।
नमाज़ के कोई वाजिब भूले से रह जाए तो उसकी तलाफी यानी कमी को पूरा करने के लिए सजदा ए सहव वाजिब है और तरीका यह है कि:
अत्तहियात के बाद दाहिनी तरफ सलाम फेर कर दो सजदे करें फिर तशह्हुद वगैरा पढ़ कर सलाम फेर लें – बहारे शरीयत 4।
सजदा ए सहव कब करना चाहिए?
अगर फर्ज की पहली दो रकातों में सूरह फ़ातिहा भूल जाएं या सूरह भूल जाए तो सजदा ए सहव वाजिब हो जाएगा।
नमाज़ की किसी भी वाजिब को उसकी जगह से आगे या पीछे कर दे।
मसलन सूरह पहले पढ़े और उसके बाद सूरह फ़ातिहा पढ़े तो सजदा ए सहव वाजिब हो जाएगा।
अगर वाजिब की अदायगी 3 बार सुब्हानल्लाह कहने बराबर के वक़्त तक कुछ सोचते रहे।
इस हाल में भी आपके उपर सजदा ए सहव वाजिब हो जाएगा।
किसी वाजिब को बदल दे यानी इमाम ज़ाहिरी नमाज़ में अहिस्ता।
और सिर्री में बुलंद आवाज़ से किराअत करें तो सजदा ए सहव वाजिब हो जाएगा।
नमाज़ के फर्जों में से किसी फ़र्ज़ को उसकी जगह से हटा कर बाद में अदा करें।
मसलन पहले सज्दा बाद में रुकुअ करे तो सजदा सजदा ए सहव हो जाएगा।
अंतिम लफ्ज़
अब तक तो आप भी सजदा ए सहव का सही और आसान तरीका आसानी से समझ गए होंगे और अब से नमाज़ की छूटी हुई वाजिबात को आसानी से पूरा कर पाएंगे।
हमने यहां पर अपने जानिब से सजदा ए सहव करने का सही तरीका को बहुत ही साफ़ और आसान शब्दों में बताया था जिसे आप आसानी से समझ जाएं।
अगर अभी भी आपके मन में कोई सवाल या फिर किसी तरह कोई डाउट भी हो तो आप हमसे कॉन्टेक्ट मि पेज के ज़रिए जरूर पूछें हम आपके सभी सवालों का जवाब जल्द से जल्द देने की कोशिश करेंगे।
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