Namaz Ke Wajibat Kitne Hai । नमाज के वाजिबात का बयान

आज यहां पर आप Namaz Ke Wajibat Kitne Hai और इनका बयान जानेंगे हमने यहां पर नमाज के वाजिब और इन वाजिबों का बयान हिंदी के बहुत ही साफ और आसान लफ्ज़ों में डिटेल्स में बताया है।

यहां पर पढ़ने के बाद आप बहुत आसानी से नमाज के सभी वाजिबों को डिटेल्स में समझ जाएंगे जिसे आप आसानी से वाजिब सहित नमाज मुकम्मल कर सकेंगे तो पूरा लेख ध्यान से आख़िर तक पढ़ें और समझें।

Namaz Ke Wajibat

यहां पर नमाज के वाजिबात का अर्थ यह है कि नमाज के अंदर कुछ चीजें ऐसी होती है जिन्हें छोड़ने पर सज्द ए सह्व करके नमाज पुरा किया जाता है।

लेकिन इन्हें कसदन यानी जान बुझकर छोड़ने से फिर से नमाज अदा करना पड़ता है वो कौन कौन सी बाते हैं आईए डिटेल्स में जानने हैं।

Namaz Ke Wajibat Kitne Hai

Namaz Ke Wajibat Kitne Hai?

नमाज के वाजिबात निम्नलिखित है:-

  • तहरीमा में लफ्जे अल्लाहू अकबर कहना
  • सूरह फातिहा अल्हम्दु शरीफ पुरा पढ़ना
  • इसके बाद सूरह या तीन छोटी आयते मिलाना
  • फर्ज की पहली दो रकातों में किरअत करना
  • सूरह फातिहा को सूरह से पहले पढ़ना
  • रूकुअ करके सीधा खड़ा होना
  • दोनों सज्दों के दरमियान बैठना
  • पहला काअदह करना
  • इसमें अत्तहियात के बाद कुछ न पढ़ना
  • हर काअदह में अत्तहियात का पढ़ना
  • लफ्जे अस्सलाम आखिर में दो बार कहना
  • जोहर असर में किरअत आहिस्ता पढ़ना
  • वित्र में दुआ ए कुनूत का पढ़ना
  • इदैन में छह तकबीरें ज्यादा कहना
  • इमाम के लिए मगरिबईशा की पहली दो रकातों में बुलन्द आवाज़ से किरअत करना।
  • फज्रजुम्मा व इदैन और तरावीह की सब रकातों में बुलन्द आवाज़ से किरअत करना।

यहां तक तो आपने सिर्फ इतना पढ़ा और समझा कि नमाज के वाजिब इनको बोलते हैं अब आईए आगे हर नमाज के वाजिब को डिटेल्स में एक एक करके जानते हैं।

1. तकबीरे तहरीमा में लफ्जे अल्लाहु अकबर का कहना

तकबीरे तहरीमा में अल्लाहू अकबर कहने का अर्थ यानी नियत बांधने में अल्लाहू अकबर कहने को कहा गया है यानी नियत बांधने में अल्लाहू अकबर कहना वाजिब भी है।

आपको मालुम होना चाहिए कि यह वाजिब होने से पहले यह एक नमाज की पहली फर्ज भी है अगर यह भूल गए तो नमाज शुरू भी नहीं होगा।

2. सूरह फातिहा अल्हम्दु शरीफ पुरा पढ़ना

सूरह फातिहा पूरा पढ़ना यानी एक भी आयत यहां नहीं छूटना चाहिए सूरह फातिहा में पूरे सात आयत है एक आयत या एक लफ्ज भी छूट जाए तो सज्द ए सहव वाजिब है।

3. इसके बाद सूरह या तीन छोटी आयते मिलाना

सूरह फातिहा मुकम्मल पढ़ने के बाद आमीन कह कर कोई सूरह पढ़ना या तीन छोटी आयतें पढ़ना वाजिब है या फिर एक या दो आयतें तीन छोटी के बराबर पढ़ना चाहिए।

4. फर्ज की पहली दो रकातों में किरअत करना

आप भी यह पहले से ही जानते होंगे कि फर्ज नमाज की सिर्फ पहली दो रकतों में ही सूरह पढ़ना चाहिए यह वाजिब है और तीसरी और चौथी में तो ऐसे भी पढ़ना जरूरी नहीं।

5. सूरह फातिहा को सूरह से पहले पढ़ना

यहां भी वही बात कि किसी भी सूरह या आयत को आपको सूरह फातिहा को मुकम्मल करने के बाद ही पढ़ना है यह एक वाजिब है इसका ध्यान रखें।

6. रूकुअ करके सीधा खड़ा होना

जब रूकुअ से समी अल्लाहु लिमन हमिदह और रब्बना लकल हम्द कह कर उठें तो कुछ देर खड़े रहे न की फिर तुरंत अल्लाहू अकबर कह कर सज्दे में चले जाएं।

7. दोनों सज्दों के दरमियान बैठना

8. यह बहुत जरूरी और कायदे की बात है आज कल बहुत सारे लोग तुरंत तुरंत दोनों सज्दें कर लेते हैं दोनों सज्दो के दरमियान कुछ देर बैठना यह वाजिब है।

9. पहला काअदह करना

पहला काअदह यानी दो रकात के दोनों सज्दों को मुकम्मल करने के बाद बैठना और अत्तहियात पढ़ना और उंगली को कलमे ला पर उठाना और इल्ला पर गिरा देना।

10. इसमें अत्तहियात के बाद कुछ न पढ़ना

यहां पर अत्तहियात के बाद पहला काअदह में कुछ नहीं पढ़ना होता है यहां पर पहला काअदह की बात की जा रही है जो की वाजिब है।

11. हर काअदह में अत्तहियात का पढ़ना

एक नमाज में ज्यादा से ज्यादा दो ही काअदह होते हैं दो रकात नमाज में एक और तीन और चार रकात में दो काअदह होते हैं दोनों में अत्तहियात पढ़ना है।

12. लफ्जे अस्सलाम आखिर में दो बार कहना

पहली बार अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह कह कर दाहिने तरफ फिर अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह कह कर बाएं तरफ सलाम फेरें यह वाजिब है।

13. जोहर असर में किरअत आहिस्ता पढ़ना

जोहर और असर की कोई नमाज हो सब में आहिस्ते से सूरह फातिहा या किसी भी अन्य सूरह को आहिस्ता पढ़ना है जितने में खुद सुन सकें।

14. वित्र में दुआ ए कुनूत का पढ़ना

वित्र की नमाज की तीसरी रकात में दुआ ए कुनूत पढ़ना चाहिए यह वाजिब है इसे छोड़ने पर सज्द ए सहव लाज़िम है तो इसका भी ख्याल रखें।

15. इदैन में छह तकबीरें ज्यादा कहना

ईद और बकरीद की नमाज में छह तकबीर कही जाती है इसके वाजिब होने के साथ साथ नमाज भी वाजिब ही होती है इसकी भी छूट जानें पर सज्द ए सहव लाज़िम है।

याद रखें इनमें से एक को भी कसदन यानी जान बुझकर छोड़ने से आपका नमाज सज्द ए सह्व से भी पुरा नहीं बल्कि उसे फिर से पढ़कर मुकम्मल करना होगा।

अंतिम लफ्ज़

मेरे प्यारे मोमिनों आप ने अब तक तो नमाज के वाजिब समझ ही गए होंगे अगर आपके मन में कोई सवाल हो तो आप हमसे कॉमेंट करके पूछ सकते हैं और इस बात को ज्यादा से ज्यादा लोगों के बीच शेयर करें जिसे वो भी नमाज़ के सभी वाजिबों को जान सकें।

एक बात और अगर कहीं पर आपको गलत लगा हो या कहीं कुछ छूट गई हो तो भी आप हमें कॉमेंट करके इनफॉर्म करें ताकि हम अपनी गलतियां सुधार सकें हम सब से छोटी बड़ी गलतियां होती रहती है इस के लिए आप को हम सब का रब जरूर अज्र देगा इंशाल्लाह तआला।